Matrubhoomi | क्या हमारी आजादी ब्रिटिश संसद की मोहताज है?

 Indian Independence Act 1947
Prabhasakshi
अभिनय आकाश । Jul 10 2024 7:59PM

आजादी के बाद भी लॉर्ड माउंटबेटन को गवर्नर जनरल बनाया गया। भारत को आजाद करने में जल्दबाजी क्यों की गई जबकि जून 1948 तक का वक्त था। इसके साथ ही सबसे बड़ा सवाल ये कि इंडिया इंडिपेंडेंस एक्ट जिसके तहत ट्रांसफर ऑफ पॉवर हुआ वो अगर ब्रिटिश संसद में पास हुआ तो क्या हमारी आजादी ब्रिटिश संसद की मोहताज है?

1947 से लेकर अब तक हर बार 15 अगस्त के दिन देश के प्रधानमंत्री लाल किले पर और 26 जनवरी के दिन राष्ट्रपति कर्तव्य पथ पर भारत देश को मिली आजादी और संविधान के लागू होने की याद दिलाते आ रहे हैं। आजादी किससे मिली अंग्रेजों से इतना तो हम सभी को पता है। लेकिन यहां पर कुछ सवाल हैं जो बार-बार सामने आते रहते है। कोई कहता है आजादी 1950 तक नहीं मिली क्योंकि हम उस वक्त तक तो ब्रिटेन के डोमिनियन में थे। सच में हमें आजादी मिली होती तो हमने सच में अंग्रेजों को मारकर क्यों नहीं भगाया। वहीं कितने अतिबुद्धिजीवि तो यहां तक कह देते हैं कि आजादी हमें मिली नहीं बल्कि लीज पर ली गई है। आजादी के बाद भी लॉर्ड माउंटबेटन को गवर्नर जनरल बनाया गया। भारत को आजाद करने में जल्दबाजी क्यों की गई जबकि जून 1948 तक का वक्त था। इसके साथ ही सबसे बड़ा सवाल ये कि इंडिया इंडिपेंडेंस एक्ट जिसके तहत ट्रांसफर ऑफ पॉवर हुआ वो अगर ब्रिटिश संसद में पास हुआ तो क्या हमारी आजादी ब्रिटिश संसद की मोहताज है? क्या अंग्रेज किसी दिन कानून वापस लेकर ये कह सकते हैं कि आजादी कैंसिल हो गई। 

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क्या था माउंटबेटन प्लान 

20 फरवरी 1947 को ब्रिटेन के प्रधानमंत्री क्लीमेंट एटली ने हाउस ऑफ कॉमन्स में ये घोषणा कर दी कि अंग्रेज 3 जून 1948 से पहले भारतीय राजनेताओं को पॉवर ट्रांसफर करेंगे और भारत छोड़कर चले जाएंगे। उसके अगले ही दिन 21 फरवरी 1947 को भारत के वायसराय को बदल दिया गया। लार्ड माउंटबेटन को नया वायसराय बनाया गया। माउंटबेटन ने अपने राजा और रिश्ते में भाई जॉर्ज सिक्स से मिलने गए। जॉर्ज सिक्स ने माउंटबेटन से कहा कि संयुक्त हो या बंटा हुआ लेकिन कोशिश करना भारत कॉमवेल्थ का हिस्सा बना रहे। हालांकि कांग्रेस के तमाम नेता कॉमेनवेल्थ में बने रहने की बात को नकारते थे। भारत आकर उन्होंने नेताओं से मुलाकात की। नेहरू और माउंटबेटन पहले से दोस्ती थी और साथ मिलकर काम करने को तैयार थे। गांधी बंटवारे के विरोधी थे और माउंटबेटन को साफ कहा कि आप हमें हमारे हाल पर छोड़ दीजिए और जल्द से जल्द यहां से चले जाइए। जिन्ना माउंटबेटन के किसी भी प्लान के लिए तैयार नहीं थे और उन्हें तो बस पाकिस्तान चाहिए था। तमाम तरह की बातों के बीच 3 जून 1947 को लार्ड माउंटबेटन ने एक प्लान को सामने रखा, जिसे माउटबेटन प्लान के नाम से जाना जाता है। इस प्लान में ब्रिटिश सरकार ने भारत के विभाजन को स्वीकार करते हुए दो नए देश बनाने का निर्णय किया था। जिसके बाद भारत के निकलकर पाकिस्तान की रूप रेखा तैयार हुई। बंटवारे की तारीख 15 अगस्त 1947 तय की गई। माउंटबेटन के हिसाब से भारत के दो प्रांत बंगाल और पंजाब को दो भागों में बांटा गया। एक हिस्से को भारत का भाग बनने था और दूसरे को पाकिस्तान के पास जाना तय किया गया था। इन दोनों राज्यों का विभाजन इनके विशाल क्षेत्रफल और बहुसंख्यक मुस्लिम आबादी को देखते हुए किया गया था। लेकिन हिंदु और सिख समुदाय भी अच्छी खासी तादाद में थे। 

माउंटबेटन का शिमला प्लान लागू हो जाता तो होते भारत के कई टुकड़े 

मई 1947 का महीना था। माउंटबेटन दंपत्ति गर्मी से राहत पाने के लिए शिमला पहुंचे। यहां ट्रांसफर ऑफ पॉवर का एक मसौदा तैयार हुआ। इस मसौदे की एक लाइन में ये लिखा था कि भारत के किसी प्रांत में अगर हिंदू मुस्लिम मिलकर तय करें तो वो अपना अलग देश बना सकते हैं। माउंटबेटन ने ये लाइन बंगाल को सोचकर जोड़ी थी क्योंकि इसका बंटवारा सबेस पेंचीदा था। नए मसौदे के तहत अगर बंगाल के लोग मिलकर तय करते तो एक और नया देश बन सकता था, जिसकी राजधानी कलकत्ता होती। ये सलाह जिन्ना के डॉयरेक्ट एक्शन के आह्वान पर कलकत्ता में खूनी खेल खेलने वाले हुसैन सोहरावर्दी ने माउंटबेटन को दी थी। नया प्लान बनाने के बाद माउंटबेटन दिल्ली जाकर भारतीय नेताओं के आगे पेश करना चाहते थे, जिसकी मंजूरी ब्रिटेन से पहले ही मिल चुकी थी। हालांकि तभी शिमला पहुंचे नेहरू को माउंटबेटन ने ये प्लान पहले ही दिखा दिया। नेहरू ने अध्ययन करने के बाद गुस्से में आ गए। माउंटबेटन के इस प्लान पर नेहरू ने साफ कर दिया कि कांग्रेस इस पर कभी राजी नहीं होगी। इस प्लान से देश दो नहीं बल्कि कई छोटे छोटे टुकड़़ों में बंट जाता। नेहरू की बात सुनकर मांउटबेटन ने इस प्लान को रद्द कर दिया। 

वीपी मेनन ने सुझाया डोमिनियन स्टेटस वाला सुझाव 

माउंटबेटन के सलाहकार वीपी मेनन ने उन्हें डोमिनियन स्टेटस वाला सुझाव दिया। भारत और पाकिस्तान को डोमिनियन स्टेटस दे दिया जाए। रियासतों के पास ये हक हो कि वो दोनों में से किसी एक को चुने। भारत में 563 से भी ज्यादा राजा-रजवाड़े थे, जिन्हें माउंटबेटन प्लान के हिसाब से आजाद कर दिया गया था। उन्हें ये निर्णय लेना था कि वो भारत से जुड़ना चाहते हैं या पाकिस्तान या फिर किसी के साथ भी नहीं। लेकिन 560 रजवाड़े ने तो पहले ही भारत के साथ जाना तय कर लिया। बाकी बचे 3 जूनागढ़, हैदराबाद और जम्मू कश्मीर की कहानी के लिए तो अलग से ही पूरा एक एपिसोड करना पड़ जाएगा। 

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क्या था बाउंड्री कमीशन 

दोनों राज्यों के विभाजन के लिए सर सायरल रेडक्लिप के नेतृत्व में बाउंड्री कमीशन बनाया गया। इन्होंने पंजाब को दो भागों ईस्ट और वेस्ट पंजाब में बांट दिया। इसी तरह बंगाल का भी विभाजन किया गया। इसके अलावा नार्थ वेस्ट फ्रंटीयर प्रोवेंस और असम के सिलहट में रेफरेंडम करवाया गया। दोनों ही भागों में रेफरेंडम पाकिस्तान के पक्ष में आया। अब्दुल गफार खान नार्थ वेस्ट फ्रंटीयर प्रोवेंस के रेफरेंडम के सख्त खिलाफ थे। उन्हें यहां का गांधी भी कहा जाता था। इसी वजह से काफी सारे प्रोवेंस के लोगों ने रेफरेंडम में हिस्सा ही नहीं लिया। बहरहाल, 15 अगस्त 1947 को भारत आजाद हो गया। 

भारत में सत्ता का हस्तांतरण कैसे हुआ 

इसी माउंटबेटन प्लान को आधार बनाकर उसे एक कानूनी रूप दिया गया, जिसे भारत का स्वाधीनता अधिनियम 1947 कहा जाता है। सत्ता हस्तांतरण से ये उद्देश्य था कि भारत में एक स्टेबल सरकार आकार ले जो सत्ता संभाले। 1947 में हमारे पास अंग्रेजों का सिस्टम था। इसमें चुने हुए प्रधानमंत्री, सभी को वोट डालने का अधिकार जैसी चीजें नहीं थी। ये संविधान बनाने के बाद आनी थी। संविधान बनने में वक्त लगता। देश में लगातार गृह युद्ध के हालात बन रहे थे। जल्द से जल्द संविधान सभा को सत्ता सौप दी जाए। आगे संविधान बनने का काम चालू रहे। कुल मिलाकर एक वैकल्पिक व्यवस्था जिसे डोमनियम स्टेट की संज्ञा दी गई। सत्ता का हस्तांतरण के लिए डोमिनियन स्टेट वाला आसान रास्ता नजर आया। डोमिनियन रूल देने के लिए ब्रिटिश संसद को महज एक कानून पास करना था। 

ब्रिटिश सरकार की संप्रभुता सामाप्त कर दी गई 

दोनों उपनिवेशों एक-एक गर्वनर जनरल रहेंगे जिनमें उनके मंत्रिमंडल के परामर्श से की जायेगी। जबतक संविधान का निर्माण नहीं होगा तदतक 1935 के आरत सरकार अधिनियम के अनुसार उपनिवेशों का शासन चलेगा। दोनों उपनिवेश अपने इच्छानुसार ब्रिटिश राष्ट्र‌मंडल में शामिल होने या संबंध विच्छेद करने के लिए स्वतंत्र रहेंगे। 15 अगस्त 1947 के बाद दोनों देशों से ब्रिटिश सरकार की संप्रभुता सामाप्त कर दी गई। पूर्व में की गई सभी संधियां भी निरस्त कर दी गई। कैबिनेट मिशन के अंदर बिठाई गई संविधान सभा देश विभाजन के दो भागों में बंट गई। इंग्लैंड के प्रधानमंत्री एटली ने संसद में कहा था कि यह घटनाओं के लंबे ताँते को चरम सीमा है। सैमुएल ने इसे इतिहास की एक अनोखी घटना और बिना युद्ध के शांति संधि कहा था। लेबर पार्टी ने भारतीयों के हाथ में सत्ता सौंपकर अपना लक्ष्य पूरा कर लिया। 15 अगस्त 1947 को भारत स्वाधीनता अधिनियम लागू हुआ। संविधान सभा आजाद भारत की पहली विधायिका बनी। नेहरू अंतरिम सरकार के प्रधानमंत्री बने। चूंकि भारत डोमिनियन स्टेटस के तहत था इसलिए वायसराय का पद भंग कर दिया गया। डोमिनियन स्टेटस के तहत ब्रिटेन के राजा का एक प्रतिनिधि यानी गवर्नर जनरल वहीं जिम्मेदारी संभालने वाला था जो बाद में भारत के राष्ट्रपति ने संभाली। नेहरू चाहते थे कि माउंटबेटन रियाशतों को मिलाने में मदद करें। 21 जून 1948 तक माउंटबेटन गवर्नर जनरल के पद पर रहे। उनके इस्तीफे के बाद सी राजगोपालाचारी पहले भारतीय गवर्नर जनरल बने। भारत 26 जनवरी 1950 तक ब्रिटेन का डोमिनियन बना रहा। संविधान लागू होते ही इंडिया इंडिपेंडेंस एक्ट रद्द हो गया और इसके साथ ही डोमिनियन स्टेटस भी चला गया। संविधान के आर्टिकल 395 के तहत इंडिया इंडिपेंडेंस एक्ट को अमान्य करार दिया गया। ताकी संविधान का इस एक्ट से कोई रिश्ता न रहे। भारत आजादी के तार ब्रिटिश संसद से टूट गए। 

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